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भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

राजग सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था 2024 तक 5 ट्रिलियन करने का लक्ष्य रखा है। जो कि इस समय 2.75  ट्रिलियन के आसपास है। पांच सालों में 5 ट्रिलियन के लक्ष्य को पूरा करना आसान नही है परन्तु मुश्किल भी नही है। जिस तरह भारत कुछ दशकों में विश्व की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है उस से विश्वास जताया जा सकता है कि इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है पिछले कुछ दशकों में इसकी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 7% से भी अधिक रही है यद्यपि पिछले तिमाही में जी डी पी विकास दर मात्र 5.8% ही थी फिर भी हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान सरकार इसे प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और सकारात्मक कदम भी उठा रही है। जैसे विनिर्माण क्षेत्र में  2024 तक 1 लाख करोड़ निवेश करने का लक्ष्य है। ईज  ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंक 150 से गिरकर 77 पर पहुंच गई है जिससे विदेशी कंपनियां अब निवेश के लिए ज्यादा आकर्षित हो रही है। यहाँ श्रम भी बहुत सस्ता है। सरकार के सकारात्मक कदमो से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

अंग्रेजों के शोषण से जब भारत आजाद हुआ तो उसकी अर्थव्यवस्था एकदम पंगु थी। श्रम तो बहुत था पर पूंजी नही थी। नेहरू जी ने आजादी के बाद मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जो समाजवादी और पूंजीपति अर्थव्यवस्था का मिश्रण थी। देश के सामने अर्थव्यवस्था से सम्बंधित दो प्रमुख प्लान सामने आए। पहला प्लान 'बॉम्बे प्लान' था जिसका मानना था कि देश में पूंजी की कमी होने के कारण सस्ते श्रम वाले जूट आदि उद्योग स्थापित किये जायें परन्तु नेहरू जी ने इसमें कोई रुचि नही दिखाई। दूसरा प्लान 'कलकत्ता प्लान' था जो अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सार्वजनिक भागीदारी का समर्थन करता था। नेहरू जी ने इसमें रुचि दिखाते हुए उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के सहारे खड़े करने की कोशिश की  परन्तु उस समय गरीबी और खाद्य समस्या के चलते उद्योगों के सहारे अर्थव्यवस्था को रफ्तार नही दी जा सकी। फिर भी उद्योगों की स्थापना और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिये औद्योगिक नीति प्रस्ताव लाये गए जिनमे 1948 का औद्योगिक नीति प्रस्ताव और 1956 का औद्योगिक नीति प्रस्ताव प्रमुख थे जिसमें ये स्प्ष्ट कर दिया गया कि रेल, परमाणु, अस्त्र-शस्त्र आदि से सम्बंधित उद्योग केवल सरकार ही लगाएगी और कुछ ही उद्योगों को लगाने की अनुमति निजी क्षेत्र को दिया जाएगा। उस समय देश की सकल घरेलू उत्पाद व्रद्धि दर लगभग 3.1% के आसपास ही थी। सोवियत संघ और जर्मनी के सहारे कई उद्योगों की स्थापना की गई जिसमे भारतीय इस्पात प्राधिकरण( सेल ) और राउरकेला इस्पात सयंत्र की स्थापना 1954 में हुई। नेहरू जी के जाने के बाद इंदिरा गांधी के शासनकाल में केंद्रीयकृत शासन प्रणाली से अर्थव्यवस्था कमर टूटने लगी थी। 1969 में बैंकों का, 1972 में बीमा कंपनियों का और फिर कोयला उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। 1969 में 'एमआरटीपी एक्ट' के जरिये ये निर्धारित कर दिया गया कि मात्र 20 करोड़ तक ही उद्योगों में निवेश किया जा सकता है। और 1973 में 'फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट' के जरिये विदेशी निवेशकों पर भारत में उद्योग लगाने के लिए बहुत सारे प्रतिबंध लगा दिए गये और लाइसेंस राज्य स्थापित कर दिया गया जिससे देश की अर्थव्यवस्था को कोई रफ्तार नही मिल सकी। इंदिरा गांधी के जाने के बाद राजिव गांधी जी ने उदारीकरण का द्वार खोलने का प्रयास किया और 20 करोड़ की निवेश की सीमा को बढ़ाकर 100 करोड़ कर दिया। लाइसेन्स प्रक्रिया को सरल बना दिया। आयात- निर्यात नियमो में ढिलाही दे दी गई। निर्यात को बढ़ावा दिया। जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलने लगी। और जीडीपी की दर 3.5% बढ़कर 5.5% प्रति वर्ष हो गई। और धीरे-धीरे यह बढ़ता रहा। और 90 के दशक में जब भारत ने वैश्वीकरण उदारीकरण व निजीकरण को अपनाया तो इसको बेहतर रफ्तार मिली। लाइसेंस राज्य को समाप्त कर दिया गया। उद्योगों में निवेश करने की सीमा समाप्त  कर दी गई। निजी क्षेत्रों को भी उद्योग स्थापित करने की अनुमति दी जाने लगी जिससे 2005 - 2008 में जीडीपी वृद्धि दर बढ़कर 9% तक के आसपास तक पहुंच गई और अब भी लगभग 7% की वृद्धि दर के साथ बढ़ रही है।

राजग सरकार लगातार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए  विभिन्न प्रकार के सुधार कर रही है। विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए नियमों में लचीलापन ला रही है। राजकोषीय घाटा 3.7% के आसपास आ चुका है और इस सरकार का लक्ष्य है कि 2024 तक इसको 5% से कम ही रखा जाए। यदि 2022 तक किसानों की आय दुगनी हो जाती है तो कृषि क्षेत्र की जीडीपी में भागीदारी बढ़ जाएगी। सेवा क्षेत्र जीडीपी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा ही रहा है। आज हम दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और इंग्लैंड को पिछाड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं । यह सरकार आयात - निर्यात के मध्य अंतर को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और निर्यात को बढ़ावा दे रही है। 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम के द्वारा देश में ही अधिक से अधिक उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। विदेशी कंपनियों के अधिक आने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश   बढ़ने लगा है। यदि यह सरकार अपने तय लक्ष्य के अनुसार 2024 तक विनिर्माण क्षेत्र में 1 लाख
करोड़ का निवेश करा लें जाती है तो 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का सपना साकार हो सकता है।

                        Rohit Singh Suryavanshi
                            Lucknow University

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