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Showing posts from August, 2019
निजी डाटा का समुचित दुरुपयोग बड़ी विदेशी कम्पनियों की उद्धारक साबित हो रही है। निजी डाटा के अप्रत्यक्ष हस्तान्तरण से बड़ी विदेशी कंपनियां भारतीय लघु उद्योगों को पंगु बना रही हैं, निजी डाटा का संरक्षण आवश्यक है। निजी डाटा आज आईटी सेक्टर के लिए चौबीस कैरेट सोने के समान है। मंदी के इस दौर में इसका प्रयोग करके ओला, ऊबर, फेसबुक व यूट्यूब जैसी बड़ी कम्पनियां करोङो कमा रही हैं जबकि भारतीय लघु उद्योग मंदी के मार से झेल रहे हैं। इनके खेल को उदाहरण से समझते हैं। जैसे कोई व्यक्ति फेसबुक पर अपनी आईडी बनाता है और उसमें अपनी पंसन्द की सारी सूचनाएं भरता है जैसे उसे कौन सी पुस्तक पसंद है?, उसे क्या खाना पसंद है?, उसे कहां घूमना पसंद है? और भी कई चीजें। इसके साथ वह अपना पूरा पता भी भरता है। जब वह ऐप इनस्टॉल करता है तो लोकेशन भी एक्सेस कर देता है। होता क्या है? यह सारी जानकारी ये कंपनियां दूसरी बड़ी कंपनियों को बेच देती है और उनसे बड़ी मात्रा में रुपये अर्जित कर लेती हैं और दोनो मिलकर निजी डेटा का बंदरबांट करती हैं। जैसे खाने की पंसद को मैकडोनाल्ड, केएफसी व अन्य बड़ी कंपनियों को बेंच देती हैं। ऐसे
केंद्र सरकार मंद पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने व फंसे NPA को निकालने के लिए बैंको के विलय में समाधान ढूंढ रही है। एक नज़र में बैंको के विलय व उनके उद्देश्य बैंकों का विलय पहली बार नही हुआ है। स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिशराज में सबसे पहले बैंक ऑफ बंगाल(1806), बैंक ऑफ बॉम्बे( 1840) व बैंक ऑफ मद्रास(1843) का विलय 'इम्पीरियल बैंक' में कर दिया और 1955 में इसका विलय 'भारतीय स्टेट बैंक' में कर दिया गया। स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के कुछ समय के बाद भी बैंको पर जमीदारों व बड़े उद्योगपतियो का ही प्रभुत्व था परन्तु 1969 ई में इंदिरा गांधी ने देश के 14 बड़े बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया ताकि देश के पिछड़े तबके व ग्रामीण लोगों की पहुँच बैंको तक की जा सके। 1980 में भी 6 बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। 1991 ई में जब अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए एलपीजी मॉडल अपनाया जा रहा था तब भी बैंको के सुधार के लिए एम. नरसिम्हन कमेटी का गठन किया गया। इसने ऋण कार्यक्रमों को समाप्त करने, बैंको के लेखा प्रणाली में सुधार करने, ऋण की समय पर वसूली करने व बैंको अंतराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान