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निजी डाटा का समुचित दुरुपयोग बड़ी विदेशी कम्पनियों की उद्धारक साबित हो रही है।


निजी डाटा के अप्रत्यक्ष हस्तान्तरण से बड़ी विदेशी कंपनियां भारतीय लघु उद्योगों को पंगु बना रही हैं, निजी डाटा का संरक्षण आवश्यक है।



निजी डाटा आज आईटी सेक्टर के लिए चौबीस कैरेट सोने के समान है। मंदी के इस दौर में इसका प्रयोग करके ओला, ऊबर, फेसबुक व यूट्यूब जैसी बड़ी कम्पनियां करोङो कमा रही हैं जबकि भारतीय लघु उद्योग मंदी के मार से झेल रहे हैं। इनके खेल को उदाहरण से समझते हैं। जैसे कोई व्यक्ति फेसबुक पर अपनी आईडी बनाता है और उसमें अपनी पंसन्द की सारी सूचनाएं भरता है जैसे उसे कौन सी पुस्तक पसंद है?, उसे क्या खाना पसंद है?, उसे कहां घूमना पसंद है? और भी कई चीजें। इसके साथ वह अपना पूरा पता भी भरता है। जब वह ऐप इनस्टॉल करता है तो लोकेशन भी एक्सेस कर देता है। होता क्या है? यह सारी जानकारी ये कंपनियां दूसरी बड़ी कंपनियों को बेच देती है और उनसे बड़ी मात्रा में रुपये अर्जित कर लेती हैं और दोनो मिलकर निजी डेटा का बंदरबांट करती हैं। जैसे खाने की पंसद को मैकडोनाल्ड, केएफसी व अन्य बड़ी कंपनियों को बेंच देती हैं। ऐसे अन्य जानकारी भी वह बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच देती है। हमने यह महसूस किया होगा जैसे ही हम कहीं ट्रेन या अन्य साधन से उतरते हैं वैसे ही ओला, उबर व ओयो जैसी बड़ी कंपनियों की तरफ से सारी जानकारियां आनी लगती हैं। आखिर क्या कारण है कि यूट्यूब पर जो चीजे हम कई बार देख लेते है तो दुबारा यूट्यूब चलाने पर हमारे लिए उसी तरह की वीडियोज आती रहती हैं। यह सारी चीजें हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि कहीं हमारे निजी डेटा का दुरुपयोग तो नही हो रहा है। कुछ दिन पहले कैम्ब्रिज एनालीटिका का मामला सामने आया था कि उसने कई करोड़ भारतीयों का डाटा बेचा ताकि चुनाव में एक बड़ी पार्टी को फायदा पहुंचाया जा सके। पिछला अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव भी इस आशंका की घेरे में है कि उनके नागरिकों का डाटा चुनाव फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से बेचा गया था। इसी वजह से उबर जैसी बड़ी कंपनियों का विस्तार हो रहा है। 2013 में इसका रेवेन्यू 10 करोड़ डॉलर था और मात्र 5 सालों में बढ़कर 2018 में 11.3 अरब डॉलर हो गया।



इस सारी बातों पर अगर गौर करें तो यह समझ में आ जायेगा कि हमारा निजी डाटा हमारे लिए कितना उपयोगी है। इसलिए इसकी सुरक्षा बहुत जरूरी है। निजी डाटा के संरक्षण के लिए विशेष कानूनों की बहुत जरूरत है। भारत के संदर्भ में देखे तो हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय में पुत्तुस्वामी फैसले ने निजता को मूल अधिकार मान लिया है। फिर भी हमारे देश की संसद ने डाटा प्राइवेसी ( निजता ) विधेयक को पास नही किया है अगर केंद्र चाहता तो संसद के इस सत्र में आसानी से पास करा सकती थी परन्तु ऐसा नही किया  गया।

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