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केंद्र सरकार मंद पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने व फंसे NPA को निकालने के लिए बैंको के विलय में समाधान ढूंढ रही है।



एक नज़र में बैंको के विलय व उनके उद्देश्य

बैंकों का विलय पहली बार नही हुआ है। स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिशराज में सबसे पहले बैंक ऑफ बंगाल(1806), बैंक ऑफ बॉम्बे( 1840) व बैंक ऑफ मद्रास(1843) का विलय 'इम्पीरियल बैंक' में कर दिया और 1955 में इसका विलय 'भारतीय स्टेट बैंक' में कर दिया गया। स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के कुछ समय के बाद भी बैंको पर जमीदारों व बड़े उद्योगपतियो का ही प्रभुत्व था परन्तु 1969 ई में इंदिरा गांधी ने देश के 14 बड़े बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया ताकि देश के पिछड़े तबके व ग्रामीण लोगों की पहुँच बैंको तक की जा सके। 1980 में भी 6 बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। 1991 ई में जब अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए एलपीजी मॉडल अपनाया जा रहा था तब भी बैंको के सुधार के लिए एम. नरसिम्हन कमेटी का गठन किया गया। इसने ऋण कार्यक्रमों को समाप्त करने, बैंको के लेखा प्रणाली में सुधार करने, ऋण की समय पर वसूली करने व बैंको अंतराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने की सिफारिश की।
एनडीए सरकार के कार्यकाल में भी कई बैंको का विलय कर दिया गया। 2017 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सहयोगी बैंको स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ जयपुर एंड बीकानेर, स्टेट बैंक ऑफ  ट्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर व महिला बैंक का विलय कर दिया गया था। कुछ समय पहले बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक व विजया बैंक का विलय हुआ था। ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, आंध्र बैंक और इलाहाबाद बैंक का पंजाब नेशनल बैंक में विलय करने की कोशिश भी की गई थी। आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 10 सरकारी बैंकों का विलय करके 4 बड़े बैंक बनाने की घोषणा कर दी है जिससे अब देश में मात्र 12 सरकारी बैंक बचे हैं। ओरिएंटल बैंक ऑफ इंडिया व यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को पंजाब नेशनल बैंक में,  केनरा बैंक का सिंडिकेट बैंक में, आंध्रा बैंक में यूनियन बैंक व कारपोरेशन बैंक व इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक के विलय की घोषणा की गई। पंजाब नेशनल बैंक मर्जर के बाद 17.95 लाख करोड़ के साथ देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक हो गया।

क्यूँ किया गया है बैंको का विलय? 

जैसा कि वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि वह बैंको का विलय 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर बनाने के लिए कर रही है। तथा लोगो को किफायती दरों पर ऋण देने के लिए बैंको के रेपो रेट लिंक प्लान शुरू करने की योजना बना रही है ताकि लोग अधिक मात्रा में ऋण लेकर निवेश करें। परन्तु बैंको के विलय की मुख्य वजह यह है कि केंद्र सरकार चाहती है कि लंबे समय से घाटे में चल रहे छोटे और क्षेत्रीय बैंकों का किसी बड़े बैंक में विलय कर दिया जाए, ताकि इनका NPA कम हो सके और ग्राहकों को बेहतर सुविधाएँ दी जा सकें। इससे पहले बैंको के विलय से NPA में कमी आई थी और वित्त वर्ष 2018-19 में लोन रिकवरी 1,21,076 करोड़ हो गई थी। जो NPA पहले 8.86 लाख करोड़ था वह घटकर 7.90 लाख करोड़ रह गया है। शायद केंद्र सरकार ने इसी मद्देनजर बैंको का विलय कर दिया है।


बैंको के विलय के लाभ

माना जा रहा है कि छोटे और भारी घाटे में चल रहे बैंकों का विलय  बड़े बैंकों में करने से सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग प्रणाली मज़बूत होगी। इससे बैंक मजबूत और टिकाऊ तो बनेंगे ही, साथ में उनकी ऋण देने की क्षमता भी बढ़ेगी। इससे बैंकों के बैड लोन के मुद्दे को हल करना और ऋण की बढती मांग को पूरा करना आसान हो सकेगा। बैंकों के विलय से इनकी संख्या तो कम होती ही है, साथ ही इन्हें बेहतर तरीके से पूंजी उपलब्ध कराई जा सकेगी। बैंकों के विलय से बैंकिंग सेवाओं का दायरा भी बढ़ जाता है, और ग्राहकों को देशभर में आसानी से बैंकिंग सेवाएँ मिल जाती हैं। विलय से बैंकों की परिचालन क्षमता बढ़ती है तथा संचालन लागत में कमी आती है। बैंको के विलय से बैंकिंग गतिविधियों में वृद्धि तथा बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार भी होता है।

बैंको के विलय से ग्राहकों को परेशानी

विलय के बाद बैंक के ग्राहकों को नया अकाउंट नंबर और कस्टमर आईडी मिल सकती है। ग्राहकों को नए अकाउंट नंबर या IFSC कोड की जानकारी आयकर विभाग, बीमा कंपनियों आदि के साथ अपडेट करानी पड़ेगी। ग्राहकों को नई चेकबुक के साथ नया डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड भी इश्यू हो सकता बैंक की कुछ शाखाएँ बंद हो सकती हैं और ग्राहकों को नई शाखा में जाना पड़ सकता है।

हालाँकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय उन्हें NPA की समस्या और पूँजी की कमी से बचाने का कोई रामबाण उपाय नहीं है। इसके साथ-साथ NPA वसूली के लिये एकीकृत प्रयास, पूंजी प्रबंधन, परिचालन लागत और अन्य खर्चों में कटौती, ऋण प्रस्तावों के मूल्यांकन में गुणवत्ता का समावेश, ऋण वसूलने के लिये बैंक के उचाधिकारियों को अधिकार, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्ति आदि उपायों को भी लागू कराने की ज़रूरत है।

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