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शोषण व लाचारी की पराकाष्ठा....

शोषण व लाचारी की पराकाष्ठा....

राज्यसभा में वंदना चव्हाण की डिबेट सुनते समय उस समय दिल पसीज उठा जब वंदना चव्हाण ने महाराष्ट्र के बीड़ जिले की घटना के बारे में बताया। उन्होंने देश का ध्यान महिलाओं पर हो रहे शोषण की ओर आकर्षित करते हुए बताया कि बेरोजगारी का मार झेल रही और अपना रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से महाराष्ट्र के बीड़ में लगभग 4605 महिलाओं ने अपना गर्भाशय ही निकलवा दिया। एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र के केवल बीड़ जिले में रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से बीस से तीस वर्ष की लगभग 4605 महिलाओं ने अपना गर्भाशय निकलवा दिया। वहां के गन्ना ठेकेदारों का मानना है कि माहवारी के समय महिलाएं ठीक से काम नही कर पाती हैं इसलिए वो उन्ही महिलाओं को काम देते थे जिनको ये समस्या नही होती थी और अगर कोई महिला कार्मिक माहवारी की वजह से काम पर नही आती थी तो उसे 'काम में अड़चन' की वज़ह से प्रतिदिन 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाता था। इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रारम्भ में केवल कुछ महिलाओं ने ही अपना गर्भाशय निकलवाया था लेकिन इनको आसानी से काम मिलने पर अन्य महिलाएं काम पाने की आश में अपना गर्भाशय निकलवाने को बाध्य हुई क्योंकि बेरोजगारी की मार से उनको रोजी-रोटी के लिए कोई अन्य साधन मुहैय्या नही हो पा रहा था और ऐसा करवाने पर वहाँ के गन्ना ठेकेदारों द्वारा उन्हें तुरंत ही काम दे दिया जा रहा था। ऐसा देखकर अब तक लाचार 4605 महिलाओं ने काम पाने की आशा में अपना गर्भाशय निकलवा दिया है।

यह सुनकर ही हमारी मानवता शर्मसार हो जानी चाहिए। आखिर इतनी बड़ी भी क्या मजबूरी थी जो उन लाचार महिलाओं को ये करने को बाध्य होना पड़ा ? मुझे तो इस घटना के पीछे कोई अन्य कारण नज़र आता है। इसलिए इस घटना की जांच होनी ही चाहिए। इस घटना में प्रशासन की लापरवाही व नाकामी साफ जगजाहिर होती है। इतनी बड़ी घटना घट जाए और प्रशासन के कानों खबर न पहुंचे ऐसा असभंव प्रतीत होता है। जिस देश में सोशल मीडिया के जरिये छोटी-छोटी घटनाएं वायरल हो जाती हैं, आंख की झपकी 1 दिन में कई मिलियन व्यूज पा लेती है उस देश ये घटना अभी तक राष्ट्रीय नही बन पाई यह पत्रकारिता की निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह अंकित करती है।

देश को आज़ाद हुए 70 वर्ष से अधिक हो गए हैं पर मजदूरों के हक़ के लिए बनाए गए कानून अब भी उनको शोषण से संरक्षण नही दिला पा रहे हैं चाहे वो संगठित क्षेत्र से सम्बंधित हो या असंगठित क्षेत्र से। सरकार ने माहवारी के समय महिलाओं को किसी भी अवकाश की छूट नही दे रखी हैं। नब्बे के दशक में बिहार में जब राजद सरकार बनी थी तो उसने सरकारी महिलाओं को माहवारी के लिए दो दिन के विशेष अवकाश की घोषणा की थी जो कि प्रशंसनीय था परन्तु वहाँ भी अब इसको समाप्त कर दिया गया है। यदि सरकार द्वारा संगठित व असंगठित क्षेत्र की महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसे ही प्रावधान किए जाए तो बीड़ जैसी समस्या से निज़ात पाया जा सकता है। हालाँकि सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दो बच्चों तक मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया है परंतु महिलाओं की सुरक्षा के लिए और भी बहुत से कार्य किये जाने बाकी हैं।

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