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Showing posts from 2019

तो क्या भारत के अर्थव्यवस्था की विकास दर पड़ोसी देशों से भी नीचे गिर गई है ?

विगत कुछ महीनों से भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा है।  भारत के अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले एक दशक के सबसे निम्नतम स्तर पर हैं। लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं ने भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के विकास की अनुमान दर घटा दी है। इस समय हम जीडीपी ग्रोथ के मामले में काफी पीछे हो चुके हैं। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में जीडीपी ग्रोथ सबसे निम्नतम स्तर पर थी जिससे हम विश्व की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का तमगा भी खो चुके हैं। एक समय जहां जीडीपी ग्रोथ 8.5 फीसदी तक पहुंच गई थी अब वह 5.5 फीसदी पर चल रही है। भारत में उद्योगों की हालत बहुत खस्ता है। बड़े उद्योगों से लेकर सूक्ष्म, लघु एवम मध्यम उद्योगों की हालत भी खराब है। ऑटोमोबाइल, एफएमसीजी, कपड़ा व हीरा उद्योग बिल्कुल चरमरा गई हैं। हालत इतनी खस्ता है कि हमारा विकास दर पड़ोसी देशों से भी कम हो गया है। बांग्लादेश से पिछड़ा भारत। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को जीडीपी ग्रोथ के मामले में बांग्लादेश ने पीछे कर दिया है। इससे पहले एशियाई विकास बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया था। ऐशियाई विकास

कैसा खोखला विकास है, विकास करने की सुगमता बढ़ी है परन्तु रोजगार कम हुए हैं।

जब 2014 में लोकसभा के आम चुनाव होने वाले थे और मोदी को राजग की तरफ से अपना प्रधानमंत्री कैंडिडेट घोषित किया गया था उस समय मोदी ने गुजरात मॉडल के आधार पर 'विकास' को 2014 लोकसभा आम चुनाव के लिए मुख्य मुद्दा बनाया था और उसी मुद्दे से उनके नेतृत्व में राजग की जीत हुई थी। उस समय विकास एक अहम मुद्दा था। विकास मुद्दे की इतनी अधिक चर्चा हुई थी कि सोशल मीडिया पर मीम तक बनने लगे थे। कभी कहा जाता विकास एक माह का हो गया, कभी कहा जाता विकास दो माह का ही गया तो कभी कहा जाता विकास नौ माह का हो गया। मोदी विकास के नाम पर 2014 में प्रधानमंत्री बन गए। अपना पहला कार्यकाल पूरा भी कर लिया और 2019 के लोकसभा के  आम चुनाव में जीत भी हासिल कर ली और अभी भी प्रधानमंत्री हैं, तबसे अब तक छः वर्ष पूरे हो गए हैं और निरन्तर विकास हो रहा है। विकास की पराकाष्ठा यहाँ तक पहुँच गई है कि मोदी सरकार ने देश मे व्यापार करने सुगमता में लगभग आधे रैंक की कमी ला दी है। 2014 में भारत व्यापार सुगमता सूचकांक में 150 वीं रैंक के आसपास था और अभी हाल ही में आई रिपोर्ट में 63 वीं रैंक पर है, पिछले वर्ष की 79 वीं रैंक से उसने

आखिर क्यों 28 सदस्यीय यूरोपियन यूनियन का प्रतिनिधिमंडल कश्मीर जा रहा है?

कश्मीर में लगातार तीन माह से चल रही पाबन्दियाँ देश के लोगों को ही नही बल्कि पूरे विश्व के लोगों को चुभ रही है। जिस तरीके से कुछ पत्रकारों ने अंतराष्ट्रीय मीडिया में यह खबर फैलाई है कि मोदी सरकार कश्मीर की आवाम पर पाबन्दियाँ लगाकर उनका जीना हराम कर रही है और वहाँ पूरी तरह से मानवाधिकारों का उलंघन हो रहा है उससे अंतराष्ट्रीय जगत अभी संतुष्ट नही है। मानवाधिकार आयोग इस बात की कई बार आलोचना भी कर चुका है कि कश्मीरी आवाम के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद से ही मोबाइल फोन सेवाओं, लैंडलाइन सेवाओं व इंटरनेट सेवाओं पर बिल्कुल रोक लगी पड़ी थी। अभी हाल ही में केवल लैंडलाइन सेवाओं का चालू किया गया है। धारा 370 हटने के बाद से ही वहाँ मीडिया को जाने की अनुमति नही थी कुछ दिन बाद केवल कुछ मीडिया को जाने की अनुमति दी गई। आज आई रिपोर्ट से भी यह खुलासा हुआ है कि पाबंदियों के चलते कश्मीर में तीन माह में लगभग 10 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। देश का सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीमकोर्ट भी केंद्र सरकार से कह चुका है कि कश्मीर की पाबन्दियाँ समाप्त की जाएँ और वहाँ पहले की तरह सामा

क्या पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर के जरिये अपना खजाना भरने की फिराक में है ?

करतारपुर कॉरिडोर खोलने की बात बहुत दिनो से चल रही थी। जब नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तानी पीएम इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे तब उन्होंने अपने बचाव में यही बात कही थी कि वो करतारपुर कॉरिडोर पर ही बात करने गए थे। भारतीय जनता पार्टी ने भी गुरुनानक जी के इस पवित्र स्थल को भारतीयों के लिए खोलवाना चाहती थी और इसके लिए पाकिस्तान से बात हुई। तमाम जद्दोजहद के बाद कल जाकर इस पर समझौता हो पाया है। मान्यताओं के अनुसार गुरुनानक जी 1522 में करतारपुर आये थे और उन्होंने अपने जीवन के 18 दिन यहीं बिताए थे। उनकी जिस जगह मौत हुई थी वहीं पर उनका गुरुद्वारा बनाया गया है। भारतीय सीमा से करतारपुर की दूरी महज 4.5 किमी है। अब तक भारतीय बीएसएफ की निगरानी में दूरबीन से करतारपुर का दर्शन करते थे। अब इस समझौते के तहत श्रद्धालु जाकर दर्शन कर सकेंगें। कल हुए समझौते के तहत भारत से किसी भी मजहब का श्रद्धालु बिना वीजा के यात्रा करने जा सकेगा। यात्रियों के लिए केवल पासपोर्ट व इलेक्ट्रॉनिक ट्रैवेल ऑथोरिजेशन ( ईटीए ) की जरूरत होगी। अगर कोई श्रद्धालु पहले जत्थे में ही जाने का इच्छुक है वह जारी पोर्टल पर रेजिस्ट्र

आखिर सरकार को ई-सिगरेट पर प्रतिबंध क्यों लगाना पड़ा?

कल केंद्र की वित्त मंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और देश मे उत्पादित सभी प्रकार के ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक अध्यादेश लाने की बात कही। इसके अंतर्गत वो सभी उत्पाद जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम ( ENDS ) के अंतर्गत आते हैं का उत्पादन, वितरण व आयात-निर्यात बंद कर दिया जाएगा। ईएनडीएस के अंतर्गत ई-सिगरेट के अलावा वेप्स, ई-हुक्का व ई-सिगार आदि भी आते हैं। इस अध्यादेश से इन सब का उत्पादन, वितरण व बिक्री बन्द हो जाएगी। इस नियम का उलंघन करने वाले को पहली बार पकड़े जाने पर 1 लाख जुर्माना या एक साल की जेल अथवा दोनों भी हो सकता है परन्तु यदि कोई दुबारा पकड़ा जाता है तो 5 लाख जुर्माना या 3 साल की जेल या दोनों हो सकता है और यदि कोई इन उत्पादों का स्टोर करता है तो उसे 55 हजार रुपये जुर्माना या 6 माह की की जेल या दोनों हो सकता है। अगर भारत मे ई-सिगरेट के बाजार को देखे तो एक लिहाज से यह अभी छोटा था परन्तु धीरे-धीरे बड़ा होने लगा था। 2017 में भारत में ई-सिगरेट का बाजार करीब 107 करोड़ रुपये था लेकिन उम्मीद जताई जा रही थी कि 2022 तक यह 60 फीसदी तक बढोत्तरी कर सकता था। प्रेसिएन्ट एंड
निजी डाटा का समुचित दुरुपयोग बड़ी विदेशी कम्पनियों की उद्धारक साबित हो रही है। निजी डाटा के अप्रत्यक्ष हस्तान्तरण से बड़ी विदेशी कंपनियां भारतीय लघु उद्योगों को पंगु बना रही हैं, निजी डाटा का संरक्षण आवश्यक है। निजी डाटा आज आईटी सेक्टर के लिए चौबीस कैरेट सोने के समान है। मंदी के इस दौर में इसका प्रयोग करके ओला, ऊबर, फेसबुक व यूट्यूब जैसी बड़ी कम्पनियां करोङो कमा रही हैं जबकि भारतीय लघु उद्योग मंदी के मार से झेल रहे हैं। इनके खेल को उदाहरण से समझते हैं। जैसे कोई व्यक्ति फेसबुक पर अपनी आईडी बनाता है और उसमें अपनी पंसन्द की सारी सूचनाएं भरता है जैसे उसे कौन सी पुस्तक पसंद है?, उसे क्या खाना पसंद है?, उसे कहां घूमना पसंद है? और भी कई चीजें। इसके साथ वह अपना पूरा पता भी भरता है। जब वह ऐप इनस्टॉल करता है तो लोकेशन भी एक्सेस कर देता है। होता क्या है? यह सारी जानकारी ये कंपनियां दूसरी बड़ी कंपनियों को बेच देती है और उनसे बड़ी मात्रा में रुपये अर्जित कर लेती हैं और दोनो मिलकर निजी डेटा का बंदरबांट करती हैं। जैसे खाने की पंसद को मैकडोनाल्ड, केएफसी व अन्य बड़ी कंपनियों को बेंच देती हैं। ऐसे
केंद्र सरकार मंद पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने व फंसे NPA को निकालने के लिए बैंको के विलय में समाधान ढूंढ रही है। एक नज़र में बैंको के विलय व उनके उद्देश्य बैंकों का विलय पहली बार नही हुआ है। स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिशराज में सबसे पहले बैंक ऑफ बंगाल(1806), बैंक ऑफ बॉम्बे( 1840) व बैंक ऑफ मद्रास(1843) का विलय 'इम्पीरियल बैंक' में कर दिया और 1955 में इसका विलय 'भारतीय स्टेट बैंक' में कर दिया गया। स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के कुछ समय के बाद भी बैंको पर जमीदारों व बड़े उद्योगपतियो का ही प्रभुत्व था परन्तु 1969 ई में इंदिरा गांधी ने देश के 14 बड़े बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया ताकि देश के पिछड़े तबके व ग्रामीण लोगों की पहुँच बैंको तक की जा सके। 1980 में भी 6 बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। 1991 ई में जब अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए एलपीजी मॉडल अपनाया जा रहा था तब भी बैंको के सुधार के लिए एम. नरसिम्हन कमेटी का गठन किया गया। इसने ऋण कार्यक्रमों को समाप्त करने, बैंको के लेखा प्रणाली में सुधार करने, ऋण की समय पर वसूली करने व बैंको अंतराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान

अमेरिका-ईरानी द्वंद्व में फसता भारत

अमेरिका-ईरानी द्वंद्व में फंसता भारत। जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे तभी रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव लड़ते समय चुनावी मुद्दों में अपनी नीतियों की ओर इशारा कर दिया था। उसमे ईरान के साथ सम्बन्ध एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। चुनाव होने के बाद जब डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बने तो उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा ईरान से किया गया परमाणु समझौता रद्द कर दिया और इस प्रकार धीरे-धीरे ईरान से अमेरिका के सम्बंध बिगड़ने लगे। कुछ दिन पहले ईरान ने अमेरिका पर आरोप लगाते हुए कहा था कि अमेरिका ने उस पर साइबर अटैक किया है और उसकी सरकारी साइटों को हैक करने का प्रयास कर रहा है फलस्वरूप, ईरान ने एक अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया जो ईरान की जासूसी कर रहा था। इससे तिलमिलाए अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान पर आक्रमण की घोषणा भी कर दी थी परन्तु 10 मिनट पहले वापस ले लिया। परन्तु दोनों के मध्य द्वंद्व युद्ध छिढ गया गया है। दोनों के मध्य इस द्वंद्व युद्ध मे भारत पिसता नजर आ रहा है। हाल ही में अमेरिका ने भारत पर ईरान से तेल लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत को ईरान

सोनभद्र घटना से सबक लेने की जरूरत :- भूमि सुधार कानूनों में अब भी सुधार की आवश्यकता।

सोनभद्र घटना से सबक लेने की जरूरत :- भूमि सुधार कानूनों में अब भी सुधार की आवश्यकता। पिछले दिनों सोनभद्र में हुए नरसंहार को देखकर सरकार को सबक ले लेना चाहिए और प्रशासनिक व्यवस्था को सुढृण करने के साथ-साथ भूमि सुधार कानूनों में सुधार करने की महती आवश्यकता है। क्योंकि जमीन हड़पने के सम्बन्ध में यह पहला अमानवीय कृत्य नही है अक्सर जमीन से सम्बंधित विवाद होते रहते है और उसके मालिकाना हक को लेकर आए दिन हिंसा होती रहती है। हमारी अदालतों में भी लंबित पड़े वादों में लगभग एक तिहाई हिस्सा भूमि और कृषि मामलों से सम्बंधित है। इसलिए सरकार को कोई ऐसा कदम उठाना चाहिए जिससे बिना हिंसा के जमीन से सम्बंधित मामले निपटाए जा सके। सोनभद्र के घोरावल तहसील के उम्भा गांव में आदिवासियों के साथ हुई हिंसा भी भूमाफियों और नौकरशाहों की करतूतों का ही परिणाम थी। मुख्य आरोपी यगदत्त जो कि प्रधान है, ने चकबन्दी अधिकारियों से साठगांठ करके वो जमीन हड़पने की कोशिश की थी। जांच में पता चला है कि एक स्थानीय भूमाफिया के कहने पर एक आईएएस अधिकारी ने लगभग 600 एकड़ जमीन की हेरफेर की थी और जिस जमीन के लिए ये घटना घटित हुई है वो भी

शोषण व लाचारी की पराकाष्ठा....

शोषण व लाचारी की पराकाष्ठा.... राज्यसभा में वंदना चव्हाण की डिबेट सुनते समय उस समय दिल पसीज उठा जब वंदना चव्हाण ने महाराष्ट्र के बीड़ जिले की घटना के बारे में बताया। उन्होंने देश का ध्यान महिलाओं पर हो रहे शोषण की ओर आकर्षित करते हुए बताया कि बेरोजगारी का मार झेल रही और अपना रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से महाराष्ट्र के बीड़ में लगभग 4605 महिलाओं ने अपना गर्भाशय ही निकलवा दिया। एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र के केवल बीड़ जिले में रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से बीस से तीस वर्ष की लगभग 4605 महिलाओं ने अपना गर्भाशय निकलवा दिया। वहां के गन्ना ठेकेदारों का मानना है कि माहवारी के समय महिलाएं ठीक से काम नही कर पाती हैं इसलिए वो उन्ही महिलाओं को काम देते थे जिनको ये समस्या नही होती थी और अगर कोई महिला कार्मिक माहवारी की वजह से काम पर नही आती थी तो उसे 'काम में अड़चन' की वज़ह से प्रतिदिन 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाता था। इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रारम्भ में केवल कुछ महिलाओं ने ही अपना गर्भाशय निकलवाया था लेकिन इनको आसानी से काम मिलने पर अन्य महिलाएं काम

कर्नाटक विधानसभा का संकट

कर्नाटक विधानसभा का संकट... किसको पता था कि इतिहास इतनी जल्दी दोहराया जाएगा। 2018 में जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और राज्यपाल वजूभाईवाला ने उसे ही सरकार बनाने का आमंत्रण दिया। पर कांग्रेस के 78 और टीडीएस के 37 विधायकों के गठबंधन ने राज्यपाल को सरकार बनाने के लिए यह कहते हुए दावा पेश किया कि बहुमत हमारे पास है। और राज्यपाल द्वारा उन्हें न आमंत्रित करने पर इन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट के आदेश पर येदुरप्पा सरकार को 15 दिन के भीतर विश्वास हासिल करना था जिसमे वो विफल रहे और सरकार गिर गई। फलस्वरूप एच डी कुमारस्वामी की अगुवाई में कांग्रेस-टीडीएस की गठबंधन  की सरकार बनी। अभी 14 महीने ही बीते हैं इस सरकार को और कांग्रेस के पहले 11 और बाद में 4 बागी विधयकों ने विधानसभा अध्यक्ष को यह कहते हुए अपना त्यागपत्र सौंप दिया उनको इस सरकार की जनता के प्रति मंशा स्पष्ठ नही लगती। वे सब जाकर मुंबई के एक रिसोर्ट में शरण लिए हुए हैं। लेकिन अभी तक कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने उनका त्यागपत्र स्वीकार नही किया है। इससे साफ ज

जल की उपलब्धता और चुनौतियां

जल की उपलब्धता की चुनैतियाँ...! जब से मोदी सरकार ने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया है उन्होंने स्पष्ठ कर दिया है कि जल संकट पर उनकी सरकार सतर्क हो चुकी है। इसीलिए उन्होंने पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय व जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय का विलय कर जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है। और आम जनमानस से वादा भी किया है की 2024 तक सभी घरों को पीने के लिए स्वच्छ जल को पहुंचा देगा। यह प्रोजेक्ट सौभाग्य योजना से लगभग आठ गुना होगा। सौभाग्य योजना में लगभग 2.5 करोड़ घरो तक बिजली कनेक्शन पहुंचाया गया है पर इस नई योजना " नल से जल" से लगभग 19 करोड़ घरो को जल मुहैया कराना है। पर यह इतना आसान नही है सरकार को इतने कम समय मे इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। लगभग एक साल इसके टेंडर आदि उठने में लग जाएंगे और बचे चार सालों में इतने विभिदता भरे देश में करना थोड़ा कठिन है पर असम्भव नही। क्योंकि जल राज्य सूची का विषय है तो कहीं कहीं राज्यो से इसके टकराव भी देखे जा सजते है मुखयतः उन राज्यों में जहाँ नदी विवाद हैं। केंद्र सरकार को इन बातों को ध्यान रखते हुए नीतियों को बना

गरीबी के मायने।

गरीबी के मायने...! हाल ही में सयुंक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफ़ोर्ड पावर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिसिएटिव ने गरीबी पर एक सूचकांक जारी किया है। यह सूचकांक गरीबी के अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर तैयार किया गया है। जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, जल व जीवन की गुणवत्ता के आधार पर ही नही तय किया गया है बल्कि इस बार इन आवश्यकताओं की पहुंच के आधार पर तय किया गया है । जैसे किसी क्षेत्र में जल की उपलब्धता है तो शिक्षा की पहुंच नही है और किसी क्षेत्र विशेष में अधिक इन सुविधाओं की पहुंच है तो किसी क्षेत्र में नही। इसलिए उस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता या हासिल करने की कठिनाई, शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल की दूरी, खाना पकाने में लिए कूकिंग गैस और जीवन स्तर में स्वच्छ्ता के महत्व के आधार पर शौचालयों का निर्माण आदि। इस आधार पर भारत 2006 से 2016 तक के दस वर्षों में विश्व मे सबसे अधिक गरीबी से मुक्त कराने वाला देश बना है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी सरकार ने काफी जनकल्याण योजनाएं चलाई हैं जो धरातल तक पहुंच सकी हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में ना

भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

राजग सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था 2024 तक 5 ट्रिलियन करने का लक्ष्य रखा है। जो कि इस समय 2.75  ट्रिलियन के आसपास है। पांच सालों में 5 ट्रिलियन के लक्ष्य को पूरा करना आसान नही है परन्तु मुश्किल भी नही है। जिस तरह भारत कुछ दशकों में विश्व की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है उस से विश्वास जताया जा सकता है कि इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है पिछले कुछ दशकों में इसकी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 7% से भी अधिक रही है यद्यपि पिछले तिमाही में जी डी पी विकास दर मात्र 5.8% ही थी फिर भी हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान सरकार इसे प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और सकारात्मक कदम भी उठा रही है। जैसे विनिर्माण क्षेत्र में  2024 तक 1 लाख करोड़ निवेश करने का लक्ष्य है। ईज  ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंक 150 से गिरकर 77 पर पहुंच गई है जिससे विदेशी कंपनियां अब निवेश के लिए ज्यादा आकर्षित हो रही है। यहाँ श्रम भी बहुत सस्ता है। सरकार के सकारात्मक कदमो से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। अंग्रेजों के शोषण से जब भारत आजाद हुआ तो उसकी अर्थव्यवस्था